देशद्रोह के आरोप में ज़मानत पर छूटे जेएनयू छात्र संघ के नेता कन्हैया कुमार ने 'फेसबुक लाइव' के ज़रिए बीबीसी हिंदी के पाठकों के सवालों के जवाब दिए.
कन्हैया कुमार से बीबीसी हिंदी के फ़ेसबुक पेज पर साढ़े चार हज़ार से अधिक पाठकों ने सवाल पूछे या टिप्पणियाँ कीं.
आधे घंटे तक चले लाइव फेसबुक चैट में दो हज़ार से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया.
कन्हैया कुमार ने कई लोगों के सवालों के जवाब दिेए.
उन्होंने कहा कि वे हीरो नहीं हैं.
कन्हैया कुमार ने यह माना कि वामपंथी पार्टियां भारतीय जनता पार्टी को केंद्र की सत्ता पर क़ाबिज़ होने से नहीं रोक सकीं, पर ये भी कहा कि अब समय आ गया है कि लोग सरकार की ग़लत नीतियों का विरोध करें.
चैट के दौरान देश के युवकों की भूमिका पर पूछे गए एक सवाल के जवाब में उन्होेंने कहा, “सरकार के ख़िलाफ़ लोगों को सड़क पर आने की ज़रूरत है. हम नौजवानों के सामने यही सबसे बड़ी चुनौती है.”
कुछ लोगों ने उनसे देशभक्ति से जुड़े सवाल भी पूछे.
जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष ने इसका जवाब देते हुए कहा कि 'मोदी सरकार के लिए तानाशाही ही देशभक्ति है.'
उन्होंने कहा, "सत्ता का केंद्रीकरण कर दिया गया है. आपके हिसाब से बात नहीं हुई तो देशद्रोह हो गया. ये लोग मुसोलिनी के विचारों से प्रभावित लगते हैं. संघ के लोगों को अपनी पोशाक के लिए कोई भारतीय परिधान नहीं मिला."
इसके साथ ही कन्हैया ने एक बार फिर संविधान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, "संविधान का पालन करना. धर्म, जाति, लिंग से ऊपर उठ कर सभी के हक़ की बातें करना, उनके लिए लड़ना ही देशभक्ति है."
कन्हैया राष्ट्रवाद के मुद्दे को यकायक ज़ोर से उछालने के पीछे भाजपा की राजनीति को कारण बताते हैं.
वे कहते हैं, “य़ूपी का चुनाव आने वाला है. बीजेपी के ख़िलाफ़ दलितों के बीच माहौल पैदा हो गया है. ध्यान भटकाने के लिए इन लोगों ने ये राष्ट्रवाद और देशद्रोह का नाटक शुरू कर दिया.”
वे क्या चाहते हैं और राजनीतिक दल उनका इस्तेमाल तो नहीं कर रहे? कन्हैया से यह सवाल भी फ़ेसबुक चैट के दौरान पूछा गया.
कन्हैया ने इस पर अपने राजनीतिक रुझान को साफ़ करते हुए कहा, 'मेरा कोई एजेंडा नहीं है. मैं लोकतांत्रिक शक्तियों के साथ हूँ, तानाशाही के ख़िलाफ़ हूँ. जो कुछ हुआ है सब अपने आप हुआ है, दक्षिणपंथी ताक़तों के ख़िलाफ़ लोग एकजुट हुए हैं, ये किसी एक पार्टी का एजेंडा नहीं है.”
बीबीसी फ़ेसबुक पर कुछ पाठकों ने उनकी गिरफ़्तारी के बारे में भी सवाल किए.
कन्हैया ने इसका जवाब देते हुए कहा, “मुझे गिरफ़्तार करके सरकार ने ही मुझे विकास का मौका दिया. सोचिए, एक छात्र नेता को इतना अहम बना दिया गया. बदलाव ये हुआ है कि मेरा फ़ेसबुक अकाउंट हैक हुआ. लोग मेरे नाम पर चंदा मांगने लगे.”
वे जेएनयू कैसे पंहुचे और वामपंथी राजनीति की ओर उनका झुकाव कैसे हुआ, चैट के दौरान यह सवाल भी उठा.
कन्हैया ने इसका भी जवाब दिया, कहा,“जेएनयू राजनीतिक रूप से सक्रिय मैदान है. मेरा रुझान लेफ़्ट की तरफ़ इसलिए हुआ कि उसमें क्रिटिसिज़्म को ख़ासा महत्व दिया गया है, जिसमें ख़ुद की आलोचना भी शामिल है. मैं भी ख़ुद की आलोचना में यक़ीन रखता हूं. जब मैं जेएनयू अध्यक्ष पद के लिए खड़ा हुआ तो भी ख़ुद की आलोचना लगातार करता रहता था.”
बीबीसी हिंदी की फ़ेसबुक चैट के दौरान कन्हैया ने निजी जिंदगी से जुड़े सवालों का भी जवाब दिया.
उनकी पसंदीदा फ़िल्म अभिनेत्री, अभिनेता, किताबें वगैरह के बारे में भी लोगों ने जानकारियां चाहीं.
पसंदीदा अभिनेत्री के बारे में कन्हैया ने कहा, "हीरोइनों में मुझे तब्बू पसंद हैं, हैदर में उन्होंने बहुत अच्छा काम किया है, शबाना आज़मी भी अच्छी लगती हैं."
लेकिन चैट पर एक फ़ेसबुक यूज़र ने भाजपा के क़रीबी अनुपम खेर और भाजपा सांसद परेश रावल के बारे में भी पूछा.
इस सवाल का जवाब देते हुए जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष ने कहा, "कलाकार के तौर पर तो मुझे परेश रावल और अनुपम खेर सबसे ज़्यादा पसंद है. लेकिन राजनीतिक तौर पर अब मैं उनके विरोध में आ गया हूं."
उन्होंने कहा, "किताबों में बाबा साहेब की "एनीहिलेशन ऑफ़ कास्ट" मुझे पसंद है, गांधी की किताब ‘माई एक्सपेरिमेंट्स विद ट्रुथ’ अच्छी है. मुझे विवेकानंद अच्छे लगते हैं. उनका एक कोट मुझे भूलता नहीं है- किसी भूखे के सामने धर्म की बात करना सबसे बड़ा अधर्म है."
रोहित वेमुला की चर्चा करते हुए कन्हैया ने कहा, “रोहित वेमुला को मैं व्यक्तिगत तौर पर नहीं जानता था. वो मुझे नहीं जानते थे लेकिन फिर भी उन्होंने मेरी स्पीच शेयर की थीं.”
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