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Rahuldai
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Posted on 08-04-08 4:29
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देब देबी अनि मन्दिरहरु
बिष पिलाएर,भट्टी चलाएर पनि गुहेश्वरिमा लाखबत्ती बालेकै छन् कुरान छोएर कसम खाएर पनि, आँगनमा पुराण हालेकै छन्
मलद्वारमा लुकाइ ल्याएको सुनले पनि मठ मन्दिरको द्वार सजाएकै छन् कमिशन को केही कमिशन दिने मिशनमा एका बिहानै बंगलामुखि धाएकै छन।
तै पनि महांकाल जागेन, मात्र जता ततै काल जाग्यो। तैपनी शंकटामाइ जागिनन मात्र जता ततै शंकट आइ लाग्यो।
मनकामनाले मन को कामना पुरा गरी दिन्छन रे माग्नेले शान्ती मागेनन माटो र बाटो मागेनन भचा खुशीमा भगवतिलाई साक्षी राखेर अझै निर्दोषहरु काटिदै छन, पापी भाकलहरु साटिदैछन।
चुपचाप् छन नर देबी, हजारौं नेपाली नर नारी हरु बली चढाइ सके भयो पुग्यो भनेकी छैनन, अझै देशको गती जनताको दुर्गती उस्ता उस्तै छ। तेत्तिस कोटी देब देबी को देश अहिले सैतानहरुको देश भएको छ, आफ्नै देश पनि परदेश भएको छ।
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atomic
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Posted on 08-04-08 4:59
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atomic
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Posted on 08-04-08 5:01
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sayami
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Posted on 08-04-08 5:21
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राहुलभाइ एकदम सही......
चस्मा झिक्दा देखिने चित्र नेपालीको प्रष्ट चरित्र
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serial
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Posted on 08-04-08 10:01
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वाह ठुल्दाइ वाह तितो सत्य भनु न एस्लाई गज्जब छ ल
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Rahuldai
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Posted on 08-05-08 9:19
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atomic जी , धन्यवाद।
सायमीजी हो सत्य यही हो। शंकटा माइ, बगलामुखीमाइ , महाँकाल जता ततै तस्कर र घुस्याह हरु को नाम सजिएको हुन्छ, सून चाँदिको तोरण, द्वार र तुँडाल हरुमा। पापी अपराधीहरुको धूप नैबैद्य मा देब देबी खुशी भएका छन भने देश को यो हाल हुँदैन र ?
सेरिल जी। तितो सत्य यही हो। चोरफटाह हरु को राज मा यिनिहरुको पनि मिलेमतो छ कि शंका लाग्न थालएे सक्यो।
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ritthe
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Posted on 08-05-08 9:45
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लौ मैले त देख्दै न देखि'रा ठुल्दाइको नयाँ मुक्तक ! समय सापेक्षिक छ ! गूड् जब
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dipika02
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Posted on 08-05-08 9:49
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"भचा खुशीमा भगवतिलाई साक्षी राखेर अझै निर्दोषहरु काटिदै छन, पापी भाकलहरु साटिदैछन।"
वाह! ठुल्दाइ वाह! बेजोड सँग प्रस्तुत गर्नु भयो तितो सत्य
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Birkhe_Maila
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Posted on 08-05-08 10:04
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swopnilcheeta
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Posted on 08-05-08 10:49
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good one .. keep posting
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Rahuldai
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Posted on 08-05-08 1:05
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रिट्ठे जी , देख्नु भयो, लेख्नु भयो, त्यती नै मेरो लागि काफी छ। ग्लासभरी फिका कफी छ। तारेमाम।
दीपिका जी, तीतो सत्य हो, वाह! भए नि छ्या ~! भए नि सत्य नै हो, धन्यवाद।
बिर्खे जी, अजब गयो गजब गयो, बिर्खेको लाजवाब लवज गयो।
स्वप्निल चिता जी,
शिकारु हुं, सिक्दै छु। सेक्दै छु।
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yacc
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Posted on 08-05-08 2:27
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बिस्टे
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Posted on 08-05-08 2:32
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वाह वाह ठुल्दाइ बेजोड को गयो। सायमी ले भने झै छ। "चस्मा झिक्दा देखिने चित्र नेपालीको प्रष्ट चरित्र "
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Rahuldai
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Posted on 08-13-08 10:22
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yacc जी ढिलाई भए नि धन्यवाद है।
बिस्टे जी, हो नेपाली चित्र अझ सचित्र कोर्न खोजेको हुं। घुस्याह बाउ को पैसा मा मोज गरेर इमान्दारिता को पाठ सिकाउनेहरु को बोलवाला छन यहाँ ।
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patalbasi
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Posted on 08-30-08 9:16
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excellent work.
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ThahaChaena
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Posted on 11-03-16 3:33
PM [Snapshot: 3516]
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मैले यो पढ्न छुटाएको रहेछु ठुल्दाई.. पुरानो रक्सि जस्तो मिठो लाग्यो
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